(आज के दैनिक भास्कर में प्रीतीश नंदी का टेक्नोलॉज़ी पर एक बढ़िया आलेख आया है . इसे साभार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. मूल आलेख आप यहाँ -...
(आज के दैनिक भास्कर में प्रीतीश नंदी का टेक्नोलॉज़ी पर एक बढ़िया आलेख आया है. इसे साभार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. मूल आलेख आप यहाँ -
http://www.bhaskar.com/news/ABH-pritish-nandi-in-dainik-bhaskar-5115634-NOR.html पढ़ सकते हैं)
आज के तकनीकी विशेषज्ञों की सबसे अच्छी बात यह है कि वे हमारी कुछ सबसे पुरानी समस्याए सुलझा रहे हैं। ऐसी समस्याएं, जो कोई कभी सुलझाना ही नहीं चाहता था, क्योंकि मुनाफा यथास्थिति में ही था, इसलिए कोई नहीं चाहता था कि ये दूर हों। हर कोई इससे पैसे कमा रहा था। फिर तकनीक के विशेषज्ञ आए और उन्होंने सारा खेल बिगाड़ दिया। आइए कुछ उदाहरण देखते हैं :
टैक्सी एप ने वह कर दिखाया है, जो कोई सरकार अब तक नहीं कर सकी थी। वे सड़कों पर निजी कारों की संख्या घटा रहे हैं और हमें सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। अब लोगों और कंपनियों को ज्यादा कारें खरीदने की जरूरत नहीं है। आप बेहतरीन ड्राइव पर जाना चाहते हैं? टैक्सी एप आपके दरवाजे पर बीएमडब्ल्यू एक्स 5 खड़ी कर देगा। आपको किफायती ड्राइव सुविधाजनक लगती है? आपका एप ऑटो को वहां बुला देगा, जहां आप मौजूद हैं। यदि ट्रैफिक में फंस गए हैं, तो बाइकर एप की मदद लेकर बाहर निकल आइए। मजदूर संगठन इनका विरोध करेंगे। ड्राइवर के दुर्व्यवहार के हर मामले को प्रतिद्वंद्वी उछालेंगे। नेता इन एप पर प्रतिबंध लगाना चाहेंगे। परंतु हम आम लोगों को ये एप बहुत प्रिय हैं।
बुकिंग एप ने फिल्में देखना, खेल आयोजनों का लुत्फ उठाना, संगीत सम्मेलनों में जाना, नाटकों का आनंद लेना बहुत आसान बना दिया है। हमारे लिए बस टिकट, रेल और हवाई जहाज के ही नहीं विंबलडन के टिकट खरीदना भी आसान हो गया है। होटल बुकिंग तो बहुत ही मजेदार हो गई है। अब बढ़ा-चढ़ाकर दरें बताने वाले बुकिंग कार्ड को विदाकर, वास्तविक दरों पर होटल बुक कीजिए। एप से सबसे अच्छी बात यह हुई है कि बिचौलिए बाहर हो गए हैं। जीवन अब आसान हो गया है। आप अब यूरो रेल की सीट भी बुक करा सकते हैं। आपको किसी चीज के लिए किसी के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं है। शॉपिंग भी बहुत अासान हो गई है। अब आपको भूसे में सुई ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सही एप की तलाश करनी है। फिर कीमतों की तुलना करने वाले एप भी हैं। ये सिर्फ प्रोडक्ट, ब्रैंड या किराना सामान की कीमतों की तुलना नहीं करते बल्कि मकान के लिए लोन, कार लोन, हैल्थ इंशोरेन्स की लागत की तुलना भी करते हैं। उन्होंने अनुमान के आधार पर फैसले लेना खत्म कर दिया है। मेरा तो यह अनुभव है कि एप के जरिये खरीदी सस्ती पड़ती है। अब कृत्रिम रूप से किसी चीज की कमी पैदा करना कठिन हो गया है। सामान घर तक पहुंचाना मुफ्त है। ज्यादातर स्थानीय एप स्टोर जरूरत की चीजें दो घंटे में पहुंचा देते हैं, वह भी सामान मिलने के बाद भुगतान की सहूलियत पर। विदेशों से सामान मंगवाने पर हफ्ता लगता है। अापको मिला सामान पसंद न आए तो चिंता की बात नहीं। वे इसे वापस ले लेंगे, फिर चाहे गलती आपकी हो।
बर्बादी का सवाल ही नहीं। एप ने इस्तेमाल की गई चीजों के लिए बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है। अब आपके पास एप है, जो चौबीसों घंटे पुरानी चीजों का रोमांचक बाजार चला रहे हैं। आप वहां सौदेबाजी करके अपनी सामान की अच्छी कीमत वसूल सकते हैं। आपको ऐसी गारंटी मिलेगी, जो कोई सेकंड हैंड कार बेचने वाला नहीं दे सकता। ऑफिस सप्लाई एप ने वे स्टोर हटा दिए हैं, जहां पड़े-पड़े पीली पड़ चुकी स्टेशनरी का विशाल भंडार होता था। स्टैपलर, प्रिंटिंग इंक, पेन, फाइलें और फोल्डरों का अंबार होता था। आपको घटिया सामग्री की झंझट से भी नहीं निपटना पड़ता। आप सर्वश्रेष्ठ में से चुनाव कर सकते हैं, जो प्राय: ऑनलाइन पर बेहतर कीमत में मिलता है। उससे सस्ता जो आप वास्तविक बाजार में नकली चीनी सामान खरीदने के लिए चुकाते हैं।
किताबें तो मेरी जीवन-रेखा हैं। किसी किताब की तलाश में किताबों की दुकानों पर भटकने की बजाय (आज के बुकस्टोर उन किताबों को शेल्फ पर जगह नहीं देते, जो खबरों में नहीं होतीं) अब आप एप के जरिये मनचाही किताब खरीद सकते हैं। यदि उनके पास नहीं हैं, तो वे कहीं से मंगा देंगे। सेकंड हैंड कॉपी चाहते हैं तो वह भी उपलब्ध है। ऐसे ही मैंने लेस्ली चार्टरीज (चीनी मूल के ब्रिटिश लेखक, जिन्होंने सेंट नामक पात्र के आस-पास साहसिक कथाएं बुनीं) का कलेक्शन खड़ा किया। इसके अलावा आप एथन हंट (मिशन इम्पॉसिबल फिल्म सीरिज का पात्र) के युग में ‘द सेंट’ हासिल कर सकते हैं? मैंने वुडी एलन (अमेरिकी लेखक, अभिनेता) की पटकथाएं, ग्राउचो मार्क्स (अमेरिकी कॉमेडियन) वहां से हासिल किए। मैंने तो बालासाहेब के लिए डेविड लो (न्यूजीलैंड के कार्टूनिस्ट, जिन्होंने ब्रिटेन में काम किया) के कार्टूनों की किताबें भी ऐसे ही मंगाई थीं। वे दशकों से छप ही नहीं रही थीं। अपने गणितीय कौशल को आजमाने के िलए मार्टिन गार्डनर्स भी मुझे वहीं से मिले। मुझे टकी (ग्रीक मूल के पत्रकार लेखक, स्पेक्टेटर पत्रिका में उनका कॉलम ‘हाई लाइफ’ प्रकाशित होता था।) की कॉपी वहीं मिली। और हां, पहले संस्करण की एलिस इन वंडरलैंड की दुर्लभ प्रति भी मुझे वहीं से मिली। चूंकि मैंने मेरी लाइब्रेरी दे दी है, अब मैं नई किताबें किंडल पर डाउनलोड करता हूं। इससे मैं दुर्लभ किताबों के दीमक का शिकार बनने से लगने वाले सदमे से बच जाता हूं।
आप शायद न जानते हों, लेकिन शो बिज़नेस में ज्वैलरी, शूज, घड़ियां, हैंडबैग जैसी डिजाइनर चीजें उधार लेने के लिए एप का ही उपयोग होता है। फैशन ज्यादा टिकता नहीं। समझदार लोग इस पर ज्यादा खर्च नहीं करते। जब जरूरत हो किराए पर मंगवा लीजिए। फर्नीचर व फाइन आर्ट की चीजें भी। किराये पर मंगवाइए, इस्तेमाल कीजिए और बदल दीजिए। डीवीडी का जमाना गया और सीडी का भी। अब आप पसंदीदा फिल्म या टीवी शो स्ट्रीमिंग एप पर देख सकते हैं। गाने भी सुन सकते हैं। वे ज्यादातर मुफ्त ही होते हैं। वे दिन हवा हुए जब आपको एक गाना सुनने के लिए पूरी कैसेट खरीदनी पड़ती थी।
यहां तक कि आपके लैपटॉप को भी कोई चीज स्टोर करके रखने की जरूरत नहीं है। अाप क्लाउड पर रखिए और जरूरत पड़ने पर ले लीजिए। आपको ऐसी हार्ड डिस्क की जरूत नहीं है, जिसकी इनकम टैक्स वाले जांच करें। अापको तो सिर्फ एक वर्चुअल वॉल्ट की जरूरत है। ढेर सारे एप हैं, जो आपको यह सुविधा दे सकते हैं। किंतु टैक्स वालों के लिए दुनिया खत्म नहीं हुई है। क्रेडिट और डेबिट कार्ड के स्वाइप, एटीएम से लेन-देन, मोबाइल वॉलेट, बिटक्वॉइन तक सबकुछ ट्रैस किया जा सकता है। इन्हें अब नकदी ढूंढ़ने के लिए कालीन उलटने और कबर्ड की तलाशी लेने की जरूरत नहीं है। सब कुछ खुले में है। अपना दिमाग और डेटा का इस्तेमाल करो। घरों, दफ्तरों पर छापा मारने से तो यह मजेदार है।
प्रीतीश नंदी
वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म निर्माता
pritishnandy@gmail.com
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