109 आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 455 सत्य का अभ्यास एक संत तपस्या ...

 

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

455

सत्य का अभ्यास

एक संत तपस्या में लीन थे। तपस्या की अवधि के दौरान वे दो सिद्धांतों पर अडिग थे - "सत्यनास्ति परम धर्मः" अर्थात सत्य से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है और "अहिंसा परमो धर्मः" अर्थात अहिंसा से बढ़कर कोई धर्म नहीं।

संत से ईर्ष्या करने वाला एक व्यक्ति उनका व्रत तोड़ना चाहता था। वह हमेशा इस प्रयास में रहता कि किसी तरह संत को झूठ बोलने या हिंसा करने के लिए विवश किया जाए। एक दिन वह संत की कुटिया में शिकारी का वेश धारण करके पहुंचा। वह एक हिरन का पीछा करते हुए वहां पहुंचा था जो कुछ समय पूर्व ही कुटिया में घुसा था।

एक भोलेभाले आदमी की तरह उसने संत से पूछा कि क्या उन्होंने किसी हिरन को अंदर आते हुए देखा है? संत असमंजस में पड़ गए। उन्होंने हिरन को अंदर आते देखा था अतः वे झूठ नहीं बोल सकते थे। लेकिन यदि वे सत्य बोल देते तो उस हिरन का वध तय था। उन्होंने एक पल विचार करने के बाद कहा - "हे मानव! जो देखा है उसे कहा नहीं जा सकता और जो कहा जा सकता है उसे देखा नहीं।" संत की गूढ़ बात का अर्थ समझ में नहीं आने पर वह व्यक्ति वहां से चला गया।

संत की बात में गहरा सार छुपा था। आँखों ने हिरन को देखा था पर आँखें बोल नहीं सकतीं, और मुँह बोल सकता है किंतु देख नहीं सकता।

ऐसा सत्य जिससे किसी निर्दोष को हानि पहुंचे उसे कहा नहीं जाना चाहिए। लेकिन अहिंसक होने के लिए व्यक्ति को झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे असमंजस के क्षणों में मनुष्य को युक्ति पूर्वक काम करना चाहिए।

456

अंततः उपाधि मिल ही गयी

विश्वामित्र इस बात से बहुत नाराज़ थे कि उनकी वर्षों की तपस्या और संन्यास के बावजूद उनके चिरप्रतिद्वंद्वी महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें राजश्री कहकर संबोधित किया जबकि वे ब्रहर्षि की उपाधि पाना चाहते थे।

इसलिए एक चांदनी रात को जब महर्षि वशिष्ठ अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे, विश्वामित्र छुपते-छुपाते उनके आसन तक पहुंच गए। वे अपनी तलवार से उनका वध करने के इरादे से वहां गए थे। हमला करने के पूर्व झाड़ियों के पीछे छुपकर वे कुछ देर के लिए वशिष्ठ की बातों को सुनने लगे।

उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को शीतल चाँदनी की तुलना विश्वामित्र से करते हुए सुना। वशिष्ठ अपने शिष्यों से कह रहे थे कि यह चांदनी रात विश्वामित्र की ही तरह शीतल, चमकदार, उपचारात्मक, स्वर्गीय, वैश्विक एवं मोहक है।

यह सुनकर विश्वामित्र के हाथ से तलवार छूट गयी। वे वशिष्ठ के चरणों में गिर पड़े। विश्वामित्र को पहचानते ही वशिष्ठ ने उन्हें आदरपूर्वक अपने आसन पर बैठाया।

फिर वशिष्ठ ने उनसे कहा कि जब तक मन मे अहंकार रहा, वे ब्रहर्षि की उपाधि प्राप्त नहीं कर पाये। और जब उनके मन से यह अहंकार जाता रहा और वे अपने प्रतिद्वंद्वी के चरणों में गिर गए, उसी समय से वे ब्रहर्षि की उपाधि के पात्र हो गए।

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209

जियो तो ऐसे जैसे हर पल आखिरी हो

हांगकांग के प्रसिद्ध कानूनविद और सांसद मार्टिन ली ने एक बार अपना अनुभव सुनाया.

उनके फुटबाल कोच ने एक दिन सारे खिलाड़ियों को बीच मैदान में जमा किया और एक प्रश्न उनकी ओर दागा – “यदि तुम कोई मैच खेल रहे हो और तुम्हें यह पता चले कि यह तुम्हारे जीवन का आखिरी 15 मिनट है तो तुम क्या करोगे?”

एक ने कहा – “मैं ईश्वर से अपने पापों का प्रायश्चित करूंगा.”

दूसरे ने कहा – “मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा.”

तीसरे ने कहा – “मैं अपनी मां को कॉल करूंगा.”

और इसी तरह बहुत से उत्तर आए. मगर कोच को संतुष्टि नहीं हुई.

अंत में कोच ने कहा – “अरे मूर्खों, तुम सब खिलाड़ी हो – तुम्हारे जीवन के अंतिम 15 मिनट में जान की बाजी वैसे भी लगी हुई है. जाओ और गोल दागो!”

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210

साहस

1865 में लुई पास्चर को रेशम के कीड़ों में हो रही बीमारी के बारे में पता लगाने व उसकी रोकथाम के लिए उपाय तलाशने का जिम्मा सौंपा गया. तीन वर्षों के लगातार अनथक प्रयासों के फलस्वरूप उन्होंने न सिर्फ उस बीमारी का पता लगाया जिससे कीड़े मर रहे थे, बल्कि इलाज भी ढूंढ निकाला.

जब लुई इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दे रहे थे तब उसी दौरान एक के बाद एक उनके तीन बच्चों की मृत्यु हो गई. इस पर एक बार उनके एक मित्र ने उनके साहस की तारीफ करते हुए कहा “आपके साहस की दाद देनी पड़ेगी कि ऐसे कठिन समय में भी आपने अपना कार्य पूरा किया.”

इस पर लुई ने कहा – “मैं साहस-वाहस को तो नहीं जानता, मगर मैं अपनी जिम्मेदारी निभाना खूब जानता हूँ, और वही मैंने किया.”

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211

सुंदरता तो देखने वाले की निगाहों में होती है

अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को एक बच्ची ने जब चित्र में देखा तो अपने पिता से कहा कि राष्ट्रपति तो कुरूप हैं.

संयोग से कुछ समय बाद पिता व पुत्री को अब्राहम लिंकन से रूबरू मिलने का मौका मिल गया.

लिंकन ने जब उस प्यारी सी बच्ची को देखा तो गोद में उठा लिया और उससे प्यारी प्यारी मजेदार बातें करने लगे.

अचानक वह बच्ची मुड़ी और अपने पिता की ओर देख कर बोली – “डैडी, अपने राष्ट्रपति लिंकन बदसूरत नहीं हैं, बल्कि ये तो बड़े खूबसूरत इंसान हैं.”

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212

उम्र का गणित

एक उम्रदराज महिला जो अपने आप को जवान दिखने के लिए तमाम जतन करती रहती थी, एक बार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ से मिली. और बातों बातों में जॉर्ज से पूछा – “आपकी नजरों में मेरी उम्र कितनी होगी?”

जॉर्ज ने उस महिला को ऊपर से नीचे देखा और कहा – “आपकी दाँतों के मुताबिक आपकी उम्र सोलह वर्ष है, आपके बालों के मुताबिक कोई सत्रह वर्ष, आपके चिकने गालों के अनुसार कहें तो चौदह वर्ष से बिलकुल भी अधिक नहीं.”

वह महिला बड़ी खुश हो गई और प्रसन्नता से बोली – “वाह! क्या मैं सचमुच इतने कम उम्र की लगती हूँ?”

“कम है या ज्यादा यह तो मैं नहीं जानता, परंतु मैंने अपना अंदाजा लगाया है बस आप इन सभी को जोड़ लीजिए” – जॉर्ज ने खुलासा किया.

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213

विश्व की धरोहर

कैंसर के उपचार में रेडियम के प्रभावी उपयोग की खोज करने के तुरंत बाद क्यूरी दंपत्ति के मित्रों ने सलाह दी कि इसका पेटेंट वे अपने नाम से करवा लें.

इस प्रस्ताव को दंपत्ति द्वारा सिरे से नकार दिया गया. उनका जवाब था – “यह विश्व की, मानवता की धरोहर है. और उसी की सेवा में इसका प्रयोग किया जाना चाहिए.”

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

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