107 आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ - Stories from here and there - 107

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  आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 451 अपने पास मत रखो , दान दो एक ब...

 

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आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ

संकलन – सुनील हांडा

अनुवाद – परितोष मालवीयरवि-रतलामी

451

अपने पास मत रखो, दान दो

एक बालक को यह समझ में नहीं आता था कि उसकी गरीब माँ दिनभर की कमाई में से आधा भोजन क्यों दान कर देती है। माँ कहा करती कि वो एक उपेक्षित बूढ़ी महिला है और सिर्फ शिव ही समझ सकते हैं कि वह ऐसा क्यों करती है। बालक ने शिव को ढूंढने का निश्चय किया ताकि वह जान सके कि उसकी माँ आधा भोजन क्यों दान कर देती हैं।

घर से चलने पर उसे एक राजा मिला जिसने एक टंकी का निर्माण कराया था किंतु वह खाली थी, एक सांप मिला जो बिल में फंसा हुआ था, एक वृक्ष मिला जिस पर फल नहीं लगते थे, एक मनुष्य मिला जिसके पैरों पर लकवा मार गया था। सभी ने उससे कहा कि सिर्फ शिव ही उनकी समस्या का हल जानते हैं।

जिस समय वह बालक भगवान शिव से मिला, उस समय वे पार्वती जी के साथ सुपारी चबा रहे थे। उन्होंने बालक को बताया कि उन सभी लोगों ने अपने लिए कुछ न कुछ बचा रखा है - राजा की एक वयस्क पुत्री है जिसका विवाह नहीं हुआ है, सांप के फन में मणि है, लकवाग्रस्त मनुष्य के पास काफी ज्ञान है, वृक्ष की जड़ों में खजाना छुपा हुआ है।

वे सभी उस बालक को आभूषण, ज्ञान, खजाना, और राजकुमारी देने को उत्सुक हैं जिसका एकमात्र कारण उसकी माँ द्वारा अर्जित पुण्य हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पुत्री, धनसंपदा, ज्ञान और भोजन को हमेशा चलायमान रहना चाहिए। ये सभी ऐसे दान हैं जिन्हें हर मनुष्य को करना चाहिए।

452

संसार का खींच और धक्का प्रभाव

लेह ज़ू ने स्वयं मछली पकड़ना सीखने का निश्चय किया। उसने एक छड़ी ली और उस पर तार बांधने के बाद शीर्ष पर लगे हुक में चारा लगा दिया। इसके बाद वह नदी के पास गया और तार डाल दिया। कुछ समय बाद एक बड़ी सी मछली फँस गयी। लेह ज़ू ने अति उत्साहित होकर पूरी ताकत के साथ छड़ी को खींचा। तनाव के कारण छड़ी बीच से टूट गयी।

लेह ज़ू ने दोबारा प्रयास किया। इस बार भी एक बड़ी सी मछली कांटे में फँस गयी। लेह ज़ू ने इस बार इतने धीरे से छड़ी को खींचा कि मछली छूट गयी और वह फिर से खाली हाथ रह गया।

लेह ज़ू ने फिर प्रयास किया। इस बार थोड़े देर बाद मछली फंसी। लेह ज़ू ने इस बार उतनी ही ताकत से तार को खींचा जितना मछली लगा रही थी। इस बार छड़ी नहीं टूटी। मछली भी थक गयी और आसानी से बाहर खींच ली गयी।

उस शाम लेह ज़ू ने अपने शिष्यों से कहा - आज मैंने एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत जाना है कि सांसारिक शक्तियों से कैसे निपटा जाये। जब यह संसार आपको किसी दिशा में खींच रहा हो तो तुम उतनी ही ताकत से इसका विरोध करो जितनी ताकत से तुम्हें खींचा जा रहा है। यदि तुम ज्यादा ताकत का इस्तेमाल करोगे तो स्वयं को तबाह कर लोगे और यदि कम ताकत का इस्तेमाल करोगे तो संसार तुम्हें तबाह कर देगा।"

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203

फल पाने की कोशिश

एक इल्ली बेर के झाड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रही थी. वह अभी जमीन के पास तने पर ही थी, मगर वह मनोयोग से ऊपर ऊंडी डगाल पर पहुँचने का अपना अभियान जारी रखे हुए थी.

एक गौरैया ने उसे देखा तो उसका उपहास उड़ाते हुए कहा – अरे ओ बेवकूफ इल्ली, क्या तुझे इतना भी नहीं पता है कि अभी बेर के फल नहीं लगे हैं!

इल्ली ने इत्मीनान से अपना अभियान जारी रखते हुए कहा – यह तो नहीं पता, मगर मुझे बखूबी पता है कि जब मैं इस वृक्ष की ऊपरी शाखाओं तक पहुँच जाऊंगी तो वहाँ मुझे खूब सारे बेर फले हुए मिलेंगे.

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204

ईश्वरीय दयालुता

एक गाड़ीवान बहुत लंबी यात्रा पर निकला था. गर्मी अधिक थी अतएव उसके पास का सारा पानी समाप्त हो गया था और रास्ते में भी उसे कहीं पानी नहीं मिला. गरमी और प्यास के कारण उसका और उसके घोड़े का बड़ा बुरा हाल हो रहा था. इतने में उसे दूर कहीं एक झोंपड़ी दिखाई दी.

शायद झोंपड़ी में पीने को कुछ पानी मिल जाए यह सोचकर उसने गाड़ी का मुंह उस ओर मोड़ दिया.

और जब वह उस झोंपड़ी के पास पहुँचा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.

एक किशोर बड़ी सी बाल्टी और एक लोटे में शीतल जल लेकर उसका इंतजार कर रहा था.

गाड़ीवान ने लोटे के जल से अपना गला तर किया, घोड़े को पानी पिलाया और जब थोड़ी शान्ति हुई तो उसने उस किशोर को इस सेवा के बदले कुछ पैसे देने चाहे.

परंतु उस किशोर ने पैसे लेने से इंकार करते हुए कहा – मेरी मां का कहना है कि प्यासे को पानी पिलाना तो ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा है. और इस सेवा का मूल्य मैं नहीं ले सकता.

गाड़ीवान को इस ईश्वरीय दयालुता आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई. वह उस किशोर का और ईश्वर का धन्यवाद करता हुआ अपनी यात्रा में आगे बढ़ चला.

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205

सच कितना कड़वा

एक देश का राजा असुंदर और काना था. एक बार उसके मन में आया कि क्यों न वह किसी अच्छे चित्रकार से अपना पोर्ट्रेट बनवाए.

एक प्रसिद्ध चित्रकार को राजा का पोर्ट्रेट चित्रित करने बुलवाया गया. चित्रकार ने सोचा कि राजा तो काना है, उसे यदि मैं काना बना दूंगा तो वह नाराज हो जाएगा और मुझे प्राणदंड दे देगा. यह सोचकर उसने राजा को सुंदर, दो आखों वाला बना दिया.

राजा ने जब यह देखा तो क्रोधित हुआ और उसे दंड दे दिया क्योंकि उसने नकली चित्र बना दिया था.

एक दूसरे देश के प्रसिद्ध चित्रकार को बुलाया गया. उस चित्रकार ने सोचा कि राजा का हूबहू चित्र बनाएगा ताकि राजा प्रसन्न होकर उसे अच्छा खासा ईनाम दें. उसने राजा का जैसे का तैसा असुंदर और काना चित्र बना दिया.

राजा ने जब यह चित्र देखा तो और क्रोधित हुआ और उसे भी दण्ड दिया क्योंकि राजा के मुताबिक चित्र में राजा ज्यादा बदसूरत और खूंखार नजर आ रहा था.

फिर एक और चित्रकार को ढूंढा गया. उसने राजा को देखा तो उसका पोर्ट्रेट बनाने से पहले अपना दिमाग लगाया.

फिर उसने बड़ी मेहनत और समय लेकर राजा का चित्र बनाया. इसे देख राजा प्रसन्न हुए. और मुंहमांगा ईनाम दिया.

चित्रकार ने इस चित्र में राजा को तीर का निशाना साधते दिखाया गया था जिसमें उनकी कानी आँख सफाई और सुंदरता से छिप गई थी.

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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)

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