आह! वो भी क्या दिन थे! ईमेल के बिना जिंदगी कितनी आसान थी. जो भी मेल (ईमेल का स्नेल, सर्प रूपी संस्करण) आता था वो डाकिया दे जाता था – दिन में...
आह! वो भी क्या दिन थे! ईमेल के बिना जिंदगी कितनी आसान थी. जो भी मेल (ईमेल का स्नेल, सर्प रूपी संस्करण) आता था वो डाकिया दे जाता था – दिन में एक बार. सुबह सुबह. वो डाक कभी भी इस मात्रा में नहीं पहुंची कि उन्हें पढ़ा नहीं जा सके या उनका जवाब नहीं दिया जा सके.
अब तो आमतौर पर हम सब ने एकानेक ईमेल खाता बनाया हुआ है. और हमारे प्रत्येक खाता के ईमेल बक्से भयानक रूप से हर हमेशा भरे हुए रहते हैं. एकाध दिन की छुट्टी आपने नेट से ली नहीं कि मामला और बिगड़ जाता है. वायग्रा और इंटरनेट लाटरी जैसे स्पैम ईमेलों की गिनती तो खैर अलग ही बात है जो स्पैम फ़ोल्डरों से भी तमाम तिकड़मों से बच निकल कर आपके इनबॉक्स में आए दिन नित्य घुसे चले आते हैं. जब तक आप किसी एक ईमेल को खोल कर पढ़ रहे होते हैं और उसका मर्यादा परक जवाब लिखने की सोच रहे होते हैं इतने में आपके ईमेल-डाकिया का डेस्कटॉप कार्यपट्टी प्रतीक झकझकाने लगता है और बताता है कि आपके आईडाक-बक्से में इस दौरान कोई पाँच ईमेल और आ चुके हैं. अपने आरएसएस फ़ीडों, ओरकुट, फेसबुक, आईएम संदेशों और ट्विटर इत्यादि के संदेशों को मिला लें तो मामला और अकल्पनीय हो जाता है.
पिछले दिनों मेरे एक परिचित ने मुझसे शिकायत की कि मैंने उनके पहले के चार ईमेल का जवाब ही नहीं दिया, जबकि बिपाशा बसु के हॉट चित्र के बारे में बताते उसके पांचवे ईमेल, जिसमें उसने जान-बूझ कर गलत कड़ी लगा दी थी, का जवाब फट से देकर पूछा था कि भई वो कड़ी काम नहीं कर रही है सही कड़ी तो बताओ. अब मैं उस परिचित को किस मुंह से बताता कि भई, प्राथमिकता नाम की भी कोई चीज होती है. जब आपके पास घंटे के सौ ईमेल आ रहे हों तो सबको तो जवाब नहीं दिया जा सकता ना. और, जवाब तो दूर की बात है, इस जीवन में सबको तो पढ़ा भी नहीं जा सकता ना – आखिर आदमी की और भी अन्य आवश्यकताएं भी तो होती हैं!
लोगबाग अकसर स्पैम को गरियाते हैं. स्पैम मेल से उन्हें तकलीफ़ होती है. मगर मुझे कई मर्तबा स्पैम ने गंभीर अवस्था से बाहर निकाला है. कोई जरूरी ईमेल का जवाब जानबूझकर नहीं देना हो, या अपनी भुलक्कड़ी आदत से लाचार, पाँच मिनट में यू-ट्यूब पर कोई जरूरी वीडियो देखकर लिखता हूँ की तर्ज पर भूले गए ईमेल के स्मरण-ईमेल के प्रत्युत्तर में साफ तौर पर, आसानी से, गले उतरने वाला बहाना लिखा जा सकता है – माफ़ कीजिएगा, आपका ईमेल मिला नहीं था – शायद स्पैम हो गया होगा. इतनी बढ़िया सुविधा को गरियाना ठीक नहीं है. मेरे विचार में स्पैम जैसे खूबसूरत, अत्यंत काम की तकनीक का ईजाद शायद इसीलिए ही हुआ होगा.
मेल बाक्स के अकल्पनीय रूप से भरने का मामला तब और गंभीर हो जाता है जब कोई तीज त्यौहार आता है. नया साल, क्रिसमस, होली-दीवाली-दशहरा-ईद आता है. एक दूसरे को शुभकामनाएं देने-लेने का धूल से सस्ता ( डर्ट चीप ) साधन ईमेल के अलावा और कोई हो सकता है भला? और इसी वजह से आपका इनबॉक्स इन खास दिनों में कई गुनी रफ़्तार से भरने लगता है. ऐसे संदेशों में किसी को कोई खास जवाब भी नहीं लिखना होता है – और किसी अच्छे संदेश को आगे फ़ॉर्वर्ड करने में कोई ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती. नजीतन, प्रत्युत्तरों और ईमेल फ़ॉर्वर्डों के कारण आपका ईमेल इनबक्सा और ज्यादा, और ज्यादा भरने लगता है. इतना कि फिर आपको सोचना पड़ता है कि डिलीट आल बटन दबाकर अपना ईमेल-दीवाला ही निकाल दें ताकि फिर न रहेगी बांस न बजेगी बांसुरी.
मगर असली समस्या तब आती है जब आप कोई महत्वपूर्ण संदेश किसी को भेजते हैं और उम्मीद करते हैं कि वो ऑनलाइन होगा और अगला दन्न से जवाब देगा(गी). पर जवाब आता नहीं. चार घंटे निकलते हैं तो सोचते हैं कि वो मीटिंग या कार्य में व्यस्त होगा, उससे फारिग होते ही आपको जवाब लिखेगा. बारह घंटे बिना जवाब के निकल जाते हैं तो आप सोचते हैं कि वो कहीं बाहर यात्रा इत्यादि पर होगा. चौबीस घंटे निकलते हैं तो कयास लगाते हैं कि शायद आपका संदेश उसके स्पैम में चला गया होगा. आप उसको फोन करने की सोच नहीं सकते क्योंकि आजकल फोन करना पुरानी तकनॉलाजी और बैकवर्ड तो माना ही जाता है, चार लोगों के बीच कोई अपने मोबाइल में बात करता है तो फूहड़ भी माना जाता है. और जाहिर है आप सामने वाले को ऐसी फूहड़ सिचुएशन में डालना नहीं चाहते. आप दोबारा स्मरण ईमेल भेजते हैं. जवाब नहीं आना होता है, नहीं आता. किसी कार्यशाला में हाऊ टू हैंडल एक्स्ट्रीम ईमेल्ज नाम के अपने प्रस्तुतिकरण में एक बंदे ने ऐसी अवस्था में एक अनुभूत प्रयोग करने की सलाह दी थी - ईमेल के शीर्षक को भड़काऊ, उकसाऊ रखें. अंदर सामग्री भले ही दूसरी हो, शीर्षक दिलचस्प बना दें. हॉट बिपाशा के शीर्षक युक्त ईमेल को सामने वाला बंदा अपने स्पैम फ़ोल्डर में जाकर, ढूंढ कर न सिर्फ शर्तिया पढ़ लेगा बल्कि जवाब भी देगा.
यूँ, हमारे जैसों के विपरीत ध्रुवों में रहने वाले जीव भी इस धरती पर हैं. मुझे पिछले दिनों किसी खास व्यक्ति ने अपना बिजनेस कार्ड दिया था. उस पर उनका ईमेल पता दर्ज था. कुछ याद आने पर मैंने उन्हें ईमेल कर दिया. जवाब नदारद. स्मरण भेजा. जवाब फिर भी नदारद. लगा कि मेरा सारा जेन्युइन ईमेल सामने वाले का स्पैम फ़ोल्डर खा रहा होगा. अपने तमाम बैकवर्डनेस को आगे करते हुए, कार्ड में दिए गए मोबाइल पर काल किया. पूछा तो उत्तर मिला कि वे तो हफ़्तों महीनों ईमेल ही चेक नहीं करते हैं. कोई ईमेल भेजता है तो फोन पर सूचना देता है तब देखते हैं. ईमेल व होम-साइट का पता बिजनेस कार्ड पर देना फैशन है ना, इसलिए दिया हुआ है. लोग पिछड़ा न समझने लगें. पर, ऐसे विपरीत ध्रुवों में रहने वाले लोग ही आज के जमाने में सुखी हैं. क्यों सही कहा ना मैंने?
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(पाँच साल पहले का (उ)ईमेल यहाँ पढ़ें)
विश्वास करें, इस बार साथियों के मेल एकाउंट का ही खयाल कर होली की शुभकामनाएँ नहीं भेजी.
जवाब देंहटाएंक्या मै आपके ब्लोग को अपने ब्लोग पर लिंक डाल दुं।
जवाब देंहटाएंआसा कर्ता हु जलदी बतायेंगे
भाई। आप हर पांच सात मिनट बाद मेल पर संदेश देते नजर आए। समझ लिया कि अनपढ़े मेलों का जवाब है यह। वैसे हमने आप को कोई मेल नहीं किया।
जवाब देंहटाएंरवि जी आपका ब्लोग पिछ्ले बारह दिनो से खोलने कि कोशीश कर रहा था पर "पाप अप आके बन्द हो जाता था ,आज आपको पढ्ने क मौका मिला,खैर हम अभी भी इ मेल के साथ साथ भारतीय डाक सेवा का उपयोग करते हैं...
जवाब देंहटाएंई पोस्ट भी रोचक मेल है मित्रवर !
जवाब देंहटाएंआपसे बेशक़ीमती जानकारी मिल रही है.
बधाई.