आइए, झगड़ा करें *-*-* लीजिए, यह भी ग़ज़ब है. झगड़ों के भी अपने फ़ायदे हैं. अध्ययनों के अनुसार, जो दम्पति आपस में झगड़ा करते रहते हैं, वे औरो...
आइए, झगड़ा करें
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लीजिए, यह भी ग़ज़ब है. झगड़ों के भी अपने फ़ायदे हैं. अध्ययनों के अनुसार, जो दम्पति आपस में झगड़ा करते रहते हैं, वे औरों की तुलना में ज्यादा फ़िट रहते हैं, उन्हें तनाव के फलस्वरूप होने वाले हृदय रोगों की संभावना कम होती है, इत्यादि इत्यादि.
लगता है अब हमें झगड़ने के लिए और झगड़ते रहने के लिए कारणों की तलाश करते रहना पड़ेगा. अब पति को अपने अख़बार के अध्ययन के बीच पत्नी के द्वारा किए गए किसी प्रकार के व्यवधान को सहने के बजाए उस पर झगड़ा किया जाना ही उचित होगा और पत्नी द्वारा यह देखे जाने के बाद कि पढ़ा गया अख़बार ठीक ढंग से मोड़ कर उचित प्रकार नहीं रखा गया है, कुढ़ कर चुप रहने या ताने मारने के बजाए, इस बात पर जमकर झगड़ा करना- पति-पत्नी दोनों की सेहत के लिए उचित रहेगा.
तो, दोस्तों, झगड़े को अब नई निगाह से देखो और झगड़ते रहो.
/*/*/
व्यंजल (हास्य ग़ज़ल=हज़ल के तर्ज पर)
/*/*/
प्रिये, है ये प्रेम, नहीं है झगड़ा
आओ यूँ सुलझाएँ अपना रगड़ा
जिंदगानी के चंद चार क्षणों में
ऊपर नीचे होते रहना है पलड़ा
करम धरम तो दिखेंगे सबको
चाहे जित्ता डालो उस पे कपड़ा
जब खत्म होगी तो सुखद होगी
यूँ पीड़ा को रखा हुआ है पकड़ा
जिया है जिंदगी को बहुत रवि
मौत कितनी है ये असली पचड़ा
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लीजिए, यह भी ग़ज़ब है. झगड़ों के भी अपने फ़ायदे हैं. अध्ययनों के अनुसार, जो दम्पति आपस में झगड़ा करते रहते हैं, वे औरों की तुलना में ज्यादा फ़िट रहते हैं, उन्हें तनाव के फलस्वरूप होने वाले हृदय रोगों की संभावना कम होती है, इत्यादि इत्यादि.
लगता है अब हमें झगड़ने के लिए और झगड़ते रहने के लिए कारणों की तलाश करते रहना पड़ेगा. अब पति को अपने अख़बार के अध्ययन के बीच पत्नी के द्वारा किए गए किसी प्रकार के व्यवधान को सहने के बजाए उस पर झगड़ा किया जाना ही उचित होगा और पत्नी द्वारा यह देखे जाने के बाद कि पढ़ा गया अख़बार ठीक ढंग से मोड़ कर उचित प्रकार नहीं रखा गया है, कुढ़ कर चुप रहने या ताने मारने के बजाए, इस बात पर जमकर झगड़ा करना- पति-पत्नी दोनों की सेहत के लिए उचित रहेगा.
तो, दोस्तों, झगड़े को अब नई निगाह से देखो और झगड़ते रहो.
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व्यंजल (हास्य ग़ज़ल=हज़ल के तर्ज पर)
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प्रिये, है ये प्रेम, नहीं है झगड़ा
आओ यूँ सुलझाएँ अपना रगड़ा
जिंदगानी के चंद चार क्षणों में
ऊपर नीचे होते रहना है पलड़ा
करम धरम तो दिखेंगे सबको
चाहे जित्ता डालो उस पे कपड़ा
जब खत्म होगी तो सुखद होगी
यूँ पीड़ा को रखा हुआ है पकड़ा
जिया है जिंदगी को बहुत रवि
मौत कितनी है ये असली पचड़ा
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