चुनाव आया मिठाईयों का मौसम लाया चुनाव का मौसम आया तो लालू यादव को याद आया कि अरे, उन्हें रेल मंत्री बने तो साल भर होने जा रहा है और उन्ह...
चुनाव आया मिठाईयों का मौसम लाया
चुनाव का मौसम आया तो लालू यादव को याद आया कि अरे, उन्हें रेल मंत्री बने तो साल भर होने जा रहा है और उन्होंने दलित महिलाओं को अभी तक मिठाई नहीं खिलाई है. अत: वे चले मिठाई खिलाने. जेब से करारे नोटों की गड्डियाँ निकालीं और सौ-सौ रूपए मिठाई खाने के लिए बाँटने लगे. अब निगोड़ा चुनाव का मौसम बीच में टपक पड़ा सो वे क्या करें. लोगों ने बेकार ही इसे चुनाव के साथ जोड़ दिया. या शायद अच्छा ही किया. अब बिहार का हर दलित यह उम्मीद तो कर ही सकता है कि लालू के राज में भले ही उसे कुछ न मिले, पाँच साल में कम से कम एक बार सौ रूपए की मिठाई खाने को तो मिल सकेगी.
लालू भाग्यशाली हैं कि मिठाई खाने के लिए पैसे पाने के होड़ में कोई भगदड़ नहीं मची और कोई मरा नहीं. पिछले लोक सभा चुनाव के दौरान (लालजी टण्डन के जन्मदिवस की खुशी में) महिलाओं को अटल बिहारी बाजपेयी के चुनाव क्षेत्र लखनऊ में साड़ी बाँटी गई थी जिसमें भगदड़ मचने से कई महिलाओं की मौत हो गई थी. पिछले दिनों मेरे शहर में नगर निगम चुनाव हुए और पार्षद पद के कुछ प्रत्याशियों ने वोटरों को जम कर मुफ़्त में दारू पिलाई. अब यह जुदा बात है कि मिठाई खाकर, साड़ी पहन कर या फिर दारू पीकर वे वोट किसको देते हैं. जनता भोली और भावुक हो सकती है, बेवकूफ़ कतई नहीं.
*-*-*
ग़ज़ल
*-*-*
लो मिठाई खाओ कि चुनाव है
तेरे द्वारे लाया हूँ कि चुनाव है
पाँच साल फिर मिलने का नहीं
पिओ मुफ़्त दारू कि चुनाव है
भाई बाप दोस्त बने हैं दुश्मन
दुश्मन बने दोस्त कि चुनाव है
ड्योढ़ी में ख़ैरातों का ये अंबार
हम क्यों भूले थे कि चुनाव है
याद रखना रवि परिवर्तनों की
वोट में है ताक़त कि चुनाव है
*-*-*
चुनाव का मौसम आया तो लालू यादव को याद आया कि अरे, उन्हें रेल मंत्री बने तो साल भर होने जा रहा है और उन्होंने दलित महिलाओं को अभी तक मिठाई नहीं खिलाई है. अत: वे चले मिठाई खिलाने. जेब से करारे नोटों की गड्डियाँ निकालीं और सौ-सौ रूपए मिठाई खाने के लिए बाँटने लगे. अब निगोड़ा चुनाव का मौसम बीच में टपक पड़ा सो वे क्या करें. लोगों ने बेकार ही इसे चुनाव के साथ जोड़ दिया. या शायद अच्छा ही किया. अब बिहार का हर दलित यह उम्मीद तो कर ही सकता है कि लालू के राज में भले ही उसे कुछ न मिले, पाँच साल में कम से कम एक बार सौ रूपए की मिठाई खाने को तो मिल सकेगी.
लालू भाग्यशाली हैं कि मिठाई खाने के लिए पैसे पाने के होड़ में कोई भगदड़ नहीं मची और कोई मरा नहीं. पिछले लोक सभा चुनाव के दौरान (लालजी टण्डन के जन्मदिवस की खुशी में) महिलाओं को अटल बिहारी बाजपेयी के चुनाव क्षेत्र लखनऊ में साड़ी बाँटी गई थी जिसमें भगदड़ मचने से कई महिलाओं की मौत हो गई थी. पिछले दिनों मेरे शहर में नगर निगम चुनाव हुए और पार्षद पद के कुछ प्रत्याशियों ने वोटरों को जम कर मुफ़्त में दारू पिलाई. अब यह जुदा बात है कि मिठाई खाकर, साड़ी पहन कर या फिर दारू पीकर वे वोट किसको देते हैं. जनता भोली और भावुक हो सकती है, बेवकूफ़ कतई नहीं.
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ग़ज़ल
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लो मिठाई खाओ कि चुनाव है
तेरे द्वारे लाया हूँ कि चुनाव है
पाँच साल फिर मिलने का नहीं
पिओ मुफ़्त दारू कि चुनाव है
भाई बाप दोस्त बने हैं दुश्मन
दुश्मन बने दोस्त कि चुनाव है
ड्योढ़ी में ख़ैरातों का ये अंबार
हम क्यों भूले थे कि चुनाव है
याद रखना रवि परिवर्तनों की
वोट में है ताक़त कि चुनाव है
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