चहुँओर हल्ला मचने के बाद, जैसी कि संभावना थी, ताज़ा खबर ये है कि आर्काइव.ऑर्ग पर से प्रतिबंध हटा लिया गया है. इस घटना से एक बात तो स्पष्ट ह...
चहुँओर हल्ला मचने के बाद, जैसी कि संभावना थी, ताज़ा खबर ये है कि आर्काइव.ऑर्ग पर से प्रतिबंध हटा लिया गया है.
इस घटना से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है.
यहाँ, भारत में, जिसके पास पैसा है, पहुँच है, वो हाई-सुप्रीम-कोर्ट में पहुँच कर उल्टे-सीधे जिरह सामने रख कर माननीय न्यायाधीशों से मूर्खता भरे कोर्ट-आदेश निकलवा सकता है जिसमें शामिल है - आर्काइव.ऑर्ग के संपूर्ण डोमेन पर प्रतिबंध - बिना कोई आर्काइव.ऑर्ग की बात पहले से सुने, या उनके बारे में जाँच-पड़ताल किए या कोई साक्ष्य हासिल किए!
इस संबंध में आर्काइव.ऑर्ग ने अपनी स्थिति स्पष्ट की तो मीडिया-नामा ने कोर्ट-ऑर्डर की प्रतिलिपियाँ सार्वजनिक रूप से, सबके डाउनलोड के लिए टांग दीं. (लिंक - https://www.medianama.com/2017/08/223-internet-archive-blocked-court-orders-obtained-bollywood-studios/ )
उस कोर्ट-ऑर्डर में आर्काइव.ऑर्ग समेत उन 2600 साइटों के वेब पते हैं जिन पर प्रतिबंध लगाया गया था.
(मद्रास उच्चन्यायालय के वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगाने के आदेश की प्रति का स्क्रीनशॉट)
आप देख सकते हैं कि मासूम वेब उपयोगकर्ता के पास अब एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, बल्कि छब्बीस सौ से अधिक ऐसी वेबसाइटों के पते हैं जहाँ से वो पायरेटेड फ़िल्में और गाने और गेम्स, प्रोग्राम आदि डाउनलोड कर सकता है!
ये है उलटे बांस बरेली को. कहाँ तो प्रतिबंध लगाने की बात हो रही थी, यहाँ तो प्रतिबंधित वेबसाइटों की मार्केटिंग हो रही है, प्रचार प्रसार हो रहा है! ये सभी साइटें वीपीएन, प्रॉक्सी आदि के माध्यम से बखूबी काम कर रही हैं.
प्रतिबंध तभी प्रभावी काम करेगा, जहाँ इंटरनेट हो ही नहीं. डिजिटल इंडिया के जमाने में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा लो अब!
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