फ़ॉक्सवैगन (या वॉक्सवैगन?) कारों में प्रदूषण का स्तर वास्तविक से कम दिखाने के लिए डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी (चीटिंग या मूर्ख बनाने वाली भी क...
फ़ॉक्सवैगन (या वॉक्सवैगन?) कारों में प्रदूषण का स्तर वास्तविक से कम दिखाने के लिए डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी (चीटिंग या मूर्ख बनाने वाली भी कह सकते हैं) का प्रयोग करने को लेकर उसकी दुनिया भर में थू-थू हो रही है. फ़ॉक्सवैगन को न केवल सफाई देनी पड़ रही है, दुनिया-भर से इस तरह की कारों को वापस बुला कर उन्हें ठीक करने का काम भी कर रही है. इस वजह से न केवल फ़ॉक्सवैगन, बल्कि जर्मनी में स्थित, विश्व की सबसे बड़ी कार निर्माताओं में से एक होने के कारण जर्मनी की अर्थव्यवस्था को झटका लगा है.
मगर यह डिफ़ीट टैक्नोलॉज़ी तो बाई डिफ़ॉल्ट हम भारतीयों के जीन में होता है. इसलिए फ़ॉक्सवैगन की इस डिफ़ीट या चीटिंग टेक्नोलॉज़ी का न केवल स्वागत किया जाना चाहिए, बल्कि उच्चतम टेक्नोलॉज़ी का कोई पुरस्कार भी देना चाहिए जो किसी नोबल-फोबल से कम कतई न हो. क्या गजब की, उन्नत टेक्नोलॉज़ी लगाई थी उन्होंने. जब कारों को दौड़ाया जाता था तब डीजल इंजन धुँए-प्रदूषण की चिंता किए बगैर कार को पूरी शक्ति प्रदान करता था, जिससे चालकों को गाड़ी भगाने में असली आनंद आता था. परंतु जैसे ही इस कार की प्रदूषण जांच की जाती थी, इसकी उन्नत टेक्नोलॉज़ी सक्रिय हो जाती थी और प्रदूषण स्तर मानक स्तर से भी कई गुना कम कर देती थी. जिस किसी के दिमाग की परिकल्पना थी. उसे दाद देनी होगी. हो न हो यह मेरे जैसे किसी भारतीय इंजीनियर के दिमाग की उपज होगी.
अब देखिए न, इधर पेरिस में प्रदूषण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है, दिल्ली में प्रदूषण कम करने सम-विषम गाड़ियाँ चलने और डीजल गाड़ियाँ बंद करने के उपाय किए जा रहे हैं, वही दूसरी ओर हमारे आटो चालक बंधु पेट्रोल इंजन में जुगाड़ फ़िट कर (यह भी चीटिंग डिवाइस का देसी संस्करण है) केरोसीन से इसे दौड़ाते हैं और बड़े गर्व से भरपूर काला धुंआ छोड़ते हैं. इधर कोने में प्रदूषण जांच कर प्रमाण पत्र देने वाला भी बिना किसी जांच-पड़ताल किए उसे चालीस रुपए में प्रदूषण अंडर कंट्रोल का प्रमाणपत्र दे देता है. ट्रैफ़िक के सिपाही भी जेब में दस-बीस रुपए ठूंस कर ऑटो के काले धुँए को अनदेखा कर देते हैं. क्योंकि यदि वो इसे अनदेखा न करे तो शाम की बैठक का इंतजाम कैसे होगा, और फिर रात काली हो जाएगी. इस डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी की मजेदार बात यह है कि इसका इंजन भी नशेड़ी होता है. स्टार्ट होने के लिए इसे पेट्रोल सुंघाना पड़ता है. हाँ, एक बार स्टार्ट हो जाए तो फिर यह अपनी मस्ती की चाल में घनघोर धुआँ छोड़ता हुआ अनंत काल तक – जब तक मानव सभ्यता प्रदूषण से मर खप न जाए, चलते रहने की ताकत रखता है.
भारत में डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी को जुगाड़ कहा जाता है. तमाम स्कूली वैनों में और मारूती 800 में जुगाड़ के रसोई गैस के टैंक लगे मिल जाएंगे. भले ही अभी पेट्रोल सस्ता हो गया हो और रसोई गैस महंगी, मगर रसोई गैस की सब्सिडी खत्म करने और इसे महंगा करने में भारतीय वाहनों में लगे इन्हीं गैस किटों का हाथ रहा है. जब आप सड़क पर किसी मारूति वैन के पीछे चल रहे होते हैं तो आती हुई गैस की हल्की सी महक से आपको अपने किचन में होने का सा अहसास होता है. डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी जो न कराए कम है.
विद्युत मंडल की नौकरी के दौरान कई उन्नत किस्म के डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी और डिफ़ीट टेक्नोलॉजिस्ट से पाला पड़ता था. कुछ उदाहरण हैं – एक सर्किट ब्रेकर निर्माता महोदय ने उच्च कमीशन खोरी से तंग आकर इसे बैलेंस करने का शानदार डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी ईजाद किया. सर्किट ब्रेकरों के अंदरूनी हिस्सों में तांबे की जगह लोहा लगाना प्रारंभ कर दिया. पर इन ब्रेकरों को आवश्यकता और सीमा से सदैव अधिक रहने वाले करंट और लो वोल्टेज ने डिफ़ीट कर दिया और ब्रेकर धड़ाधड़ फेल होने लगे. फ़ॉक्सवैगन कारों की डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी की तरह यह भी अंततः पकड़ में आ गई. इसी तरह, जब नए इलेक्ट्रॉनिक मीटर आए, तो डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी में उस्ताद भारतीय उपभोक्ताओं बिजली की खपत कम दर्ज करवाने कई तरह के नए नायाब डिफ़ीट टैक्नोलाज़ी ईजाद किए. किसी ने बाहर से चुंबक लगाया, किसी ने सर्किट में नजर न आने वाला रेजिस्टेंस लगा कर करंट बायपास किया, किसी ने अंडरग्राउंड बायपास किया तो किसी ने सीधे कंटिया ही डाल लिया. वैसे कंटिया लगाकर विद्युत मंडलों की कार्यप्रणाली को डिफ़ीट देने वाले तो यत्र-तत्र-सर्वत्र मिल जाएंगे. एक आईएएस अफसर ने अपने विशाल सरकारी बंगले का (बँगला सरकारी होता है, परंतु निजी क्षेत्र का बिल जेब से भरना होता है) सारा क्षेत्र सरकारी ऑफ़िस के मीटर से रौशन करवा रखा था और इस तरह से भारी बिल को डिफ़ीट देता रहता था.
अब इससे पहले कि आप मेरे इन डिफ़ीटिया किस्सों को पढ़ते पढ़ते इस पृष्ठ को छोड़ने का डिफ़ीटिया मन बनाएँ, किस्सा यहीं समाप्त करते हैं और इल्तिज़ा करते हैं कि आप भी अपना कोई डिफ़ीट टेक्नोलॉज़ी वाला धांसू किस्सा तो सुना दें!
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