आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 431 विरोधी का हृदय जीतना ही सर्वश्र...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
431
विरोधी का हृदय जीतना ही सर्वश्रेष्ठ विजय है
एक बार की बात है, यूनान के राजा पेरीकिल्स से एक व्यक्ति बहुत नाराज था। उसने पेरीकिल्स के विरोध में अनाप-शनाप बकना शुरू कर दिया। गुस्से में वह यह भी भूल गया कि राजा पेरीकिल्स के विरोध में वह कितने अभद्र शब्दों और गालियों का प्रयोग कर रहा है। पेरीकिल्स धैर्यतापूर्वक उस नाराज व्यक्ति की बातें सुनते रहे। लेकिन उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ।
उसे अपशब्द बकते हुए दोपहर और फिर देर शाम हो गयी। देर शाम तक वह व्यक्ति बुरी तरह थक चुका था और उठकर जाने लगा। पेरीकिल्स ने अपने सेवक को बुलाया और धीरे से कहा कि लालटेन लेकर उसके साथ जाओ ताकि वह व्यक्ति आराम से अपने घर पहुंच जाए।
यह सुनकर वह व्यक्ति उनके चरणों में गिर पड़ा और माफी मांगने लगा।
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कभी गुस्सा मत करो
एक गांव में एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने घर के दालान में बैठकर लोगों को यह उपदेश देता रहता था कि यदि वे जीवन में सुखी, समृद्ध और सफल होना चाहते हैं तो उन्हें यह मंत्र हमेशा याद रखना चाहिए - "कभी गुस्सा मत करो"।
एक दिन पड़ोस के गांव का एक व्यक्ति उधर से गुजरा। जब उसने इस बुजुर्ग व्यक्ति के उपदेश के बारे में सुना तो उसके मन में उनसे मिलने की इच्छा उत्पन्न हुयी।
वह जाकर बुजुर्ग व्यक्ति के पास बैठ गया और पूछा - "कृपया मुझे ऐसा मंत्र बतायें जिससे मैं अपनी जीवन को सफल बना सकूं।" बुजुर्ग व्यक्ति ने उत्तर दिया - "केवल एक चीज याद रखो। कभी किसी पर गुस्सा मत हो।" उस व्यक्ति ने कुछ न सुन पाने का बहाना किया और फिर पूछा - "क्षमा करें मैं ठीक से सुन नहीं पाया, आपने क्या कहा।"
बुजुर्ग व्यक्ति ने इस बार थोड़ा जोर से कहा - "कभी गुस्सा मत करो।"
उस व्यक्ति ने फिर कहा - "मैं अभी भी ठीक से नहीं सुन पाया।"
बुजुर्ग व्यक्ति ने गुस्से से कहा - "कभी किसी पर गुस्सा मत करो।"
उस व्यक्ति ने फिर कुछ नहीं सुन पाने का इशारा किया और बुजुर्ग व्यक्ति से फिर पूछा। बुजुर्ग व्यक्ति ने गुस्से में आकर अपनी छड़ी उठा ली और उस व्यक्ति के सिर पर जमाते हुए बोला - "हजार बार तुम्हें बता चुका हूं कि कभी गुस्सा मत करो पर तुम्हारी समझ में अभी तक नहीं आया!"
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उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री : तब और अब
उत्तर प्रदेश के तब के मुख्य मंत्री गोविंद वल्लभ पंत अपने निजी खर्चों व सरकारी खर्चों को पूरी तरह अलग रखते थे. उनके व उनके परिवार पर होने वाले तमाम खर्चों का भुगतान वे अपने जेब से करते थे.
एक बार एक सरकारी मीटिंग में चाय नाश्ता परोसा गया. परंतु उस मीटिंग में नियमानुसार चाय-नाश्ते की व्यवस्था नहीं थी. जब इस हेतु व्यवस्था के लिए पंत जी की स्वीकृति लेने के लिए फाइल नोटिंग चली तो पंत जी ने इनकार करते हुए लिखा – मैं नियमानुसार सरकारी खर्चे की स्वीकृति नहीं दे सकता. और चाय नाश्ते के खर्च के की रकम स्वयं अपनी जेब से दिए.
और आज के मुख्य मंत्री....?
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जी जान से भागो!
एक बार एक पादरी कहीं जा रहे थे. उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा एक घर के बाहर लगे घंटी-के-बटन (डोर बेल स्विच) को दबाने की कोशिश उछल उछल कर कर रहा था मगर चूंकि वह छोटा था, उसका हाथ स्विच पर पहुँच नहीं रहा था.
पादरी ने यह देखा तो वे बच्चे के पास पहुँचे और उसके लिए बटन दबा दिया, और बच्चे की ओर देख कर मुस्कुराए. पादरी ने सोचा कि बच्चे की अम्मा बाहर निकलेगी और उसे धन्यवाद देगी.
बच्चे ने जवाब में उससे भी बड़ी मुस्कुराहट फेंकी और वहाँ से भागते हुए चिल्लाया – “अगर तुम नैंसी आंटी की गाली नहीं खाना चाहते हो तुम भी जी जान से भागो!”
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जीवन की दो समस्याएँ
एक मानसिक चिकित्सालय में एक पर्यवेक्षक पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि एक पागल बैठा हुआ आगे पीछे अंतहीन रूप से अपने आपको झुला रहा है और चिल्ला रहा है – ऐश्वर्या! ऐश्वर्या!!
पर्यवेक्षक ने साथ चल रहे चिकित्सालय के डॉक्टर से पूछा कि इसकी ऐसी हालत कैसी हुई?
यह ऐश्वर्या नामक किसी लड़की से प्यार करता था, परंतु उस लड़की ने इसे धोखा देकर किसी और से शादी कर ली तो इसकी ये स्थिति हो गई – डॉक्टर ने बताया.
आगे चलने पर एक अन्य पागल अपना सिर दीवार पर पटक रहा था और वह भी ऐश्वर्या ऐश्वर्या चिल्ला रहा था.
पर्यवेक्षक ने आश्चर्य और कौतूहल से डॉक्टर की ओर देखा.
इस व्यक्ति से ऐश्वर्या की शादी हुई थी – डॉक्टर ने खुलासा किया.
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(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
कभी कभी सुनकर भूल जाना ही श्रेष्ठ है।
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