आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ संकलन – सुनील हांडा अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी 409 मुझे अपना अहंकार दे दो एक संन...
आसपास की बिखरी हुई शानदार कहानियाँ
संकलन – सुनील हांडा
अनुवाद – परितोष मालवीय व रवि-रतलामी
409
मुझे अपना अहंकार दे दो
एक संन्यासी एक राजा के पास पहुचे। राजा ने उनका आदर सत्कार किया। कुछ दिन उनके राज्य में रुकने के पश्चात संन्यासी ने जाते समय राजा से अपने लिए उपहार मांगा।
राजा ने एक पल सोचा और कहा - "जो कुछ भी खजाने में है, आप ले सकते हैं।"
संन्यासी ने उत्तर दिया - "लेकिन खजाना तुम्हारी संपत्ति नहीं है, वह तो राज्य का है और तुम सिर्फ ट्रस्टी हो।"
"तो यह महल ले लो।"
"यह भी प्रजा का है।" - संन्यासी ने हंसते हुए कहा।
"तो मेरा यह शरीर ले लो। आपकी जो भी मर्जी हो, आप पूरी कर सकते हैं।" - राजा बोला।
"लेकिन यह तो तुम्हारी संतान का है। मैं इसे कैसे ले सकता हूं?" -संन्यासी ने उत्तर दिया।
"तो महाराज आप ही बतायें कि ऐसा क्या है जो मेरा हो और आपके लायक हो?" - राजा ने पूछा।
संन्यासी ने उत्तर दिया - "हे राजा, यदि आप सच में मुझे कुछ उपहार देना चाहते हैं, तो अपना अहंकार, अपना अहम दे दो।"
अहंकार पराजय का द्वार है। अहंकार यश का नाश करता है।
यह खोखलेपन का परिचायक है।
410
दो गलत मिलकर सही नहीं होते
हमने ऐसा सुना है कि अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके मगध की राजगद्दी हथिया ली थी। जब कुछ समय गुजर गया तो अजातशत्रु को बहुत पश्चाताप हुआ। उसने अपने पापों का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। इसने अपने राजगुरू को बुलाकर पूछा कि वह किस तरह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है?
राजगुरू ने उसे पशुबलि यज्ञ करने का परामर्श दिया। सारे राज्य में पशुबलि यज्ञ की तैयारियाँ पूरे जोर-शोर के साथ की गयीं।
भगवान बुद्ध उसी दौरान उसके राज्य में पधारे। उनके आगमन का समाचार सुनकर अजातशत्रु उनसे मिलने आया।
भगवान बुद्ध ने उससे पास की एक झाड़ी से फूल तोड़कर लाने को कहा। अजातशत्रु ने ऐसा ही किया। उन्होंने अजातशत्रु से फिर कहा - "अब दूसरा फूल तोड़कर लाओ ताकि पहला फूल खिल सके।"
अजातशत्रु ने निवेदन किया - "लेकिन महात्मा यह असंभव है। एक टूटा हुआ फूल दूसरे फूल को तोड़ने से कैसे खिल सकता है?"
बुद्ध ने उत्तर दिया - "उसी तरह जैसे तुम एक हत्या के पश्चाताप के लिए दूसरी हत्या करने जा रहे हो। एक गलत कार्य को तुम दूसरे गलत कार्य से कभी सही नहीं कर सकते। इसके बजाए तुम अपना सारा जीवन मनुष्यों, जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की सेवा में समर्पित कर दो।"
यह सुनकर अजातशत्रु उनके चरणों में गिर पड़ा और आजीवन उनका समर्पित अनुयायी बना रहा।
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153
कुछ नहीं
खोजा अपने मित्र अली की फलों की दुकान पर केले खरीदने गया. अली को शरारत सूझी. खोजा ने एक दर्जन केले के भाव पूछे.
अली ने जवाब में कहा – दाम कुछ नहीं
खोजा ने कहा – अच्छा! तब तो एक दर्जन दे दो.
केले लेकर खोजा जाने लगा.
पीछे से अली ने पुकारा – अरे, दाम तो देते जाओ.
खोजा ने आश्चर्य से पूछा – अभी तो तुमने दाम कुछ नहीं कहा था, फिर काहे का दाम?
अली ने शरारत से कहा – हाँ, तो मैं भी तो वही मांग रहा हूं. दाम जो बताया ‘कुछ नहीं’ वह तो देते जाओ.
अच्छा – खोजा ने आगे कहा – तो ये बात है.
फिर खोजा ने एक खाली थैला अली की ओर बढ़ाया और पूछा – इस थैले में क्या है?
बेध्यानी में अली ने कहा – कुछ नहीं.
तो फिर अपना दाम ले लो – खोजा ने वार पलटा.
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154
दिल और जुबान
वह दो वरदान क्या हैं जो मनुष्यत्व को प्राप्त हैं? वे हैं – दिल और जुबान
और वह दो अभिशाप क्या हैं जो मनुष्यत्व को प्राप्त हैं? वे हैं दिल और जुबान
क्रूर, कठोर हृदय मनुष्य को अपराधी बना देता है, वहीं कोमलहृदयी मनुष्य महान होता है. वहीं, चटोरी और कड़वी जुबान जहाँ मनुष्य के लिए घातक है, संतोषी और मीठी जुबान सर्वत्र सुखदायी व प्रशंसनीय होती है.
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155
अधिकार नहीं, अनुग्रह
एक दम्पत्ति गुरु के पास पहुँचा और प्रार्थना की कि उनका दाम्पत्य जीवन खटाई में पड़ गया है, उसे बचाने का कोई गुर दें.
गुरु ने धीरज से उनकी समस्याएं सुनी और उन्हें यह गुरुमंत्र दिया -
अधिकार जताना छोड़ो. अनुग्रह करना सीखो.
उस दिन के बाद उस दम्पत्ति का दाम्पत्य जीवन खुशहाल हो गया.
(सुनील हांडा की किताब स्टोरीज़ फ्रॉम हियर एंड देयर से साभार अनुवादित. कहानियाँ किसे पसंद नहीं हैं? कहानियाँ आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं. नित्य प्रकाशित इन कहानियों को लिंक व क्रेडिट समेत आप ई-मेल से भेज सकते हैं, समूहों, मित्रों, फ़ेसबुक इत्यादि पर पोस्ट-रीपोस्ट कर सकते हैं, या अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित कर सकते हैं.अगले अंकों में क्रमशः जारी...)
इंसान आखिर तक इसी भूल में रहता है की ये मेरा है वो मेरा है जबकि वह तो खली हाथ ही आया था और खाली हाथ ही जायेगा.. अहंकार वाकई पराजय का प्रमुख कारन है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कहानी, सुन्दर सीख..
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