नए साल के नए संकल्प :) *-*-* आज सुबह-सुबह एक मित्र ने दुर्ग से फ़ोन पर बधाईयाँ देते हुए कहा कि तुम्हारा व्यंग्य लेख- ‘नए साल के नए संक...
नए साल के नए संकल्प :)
*-*-*
आज सुबह-सुबह एक मित्र ने दुर्ग से फ़ोन पर बधाईयाँ देते हुए कहा कि तुम्हारा व्यंग्य लेख- ‘नए साल के नए संकल्प’ बहुत ही बढ़िया है, और पढ़ने में मज़ा आया. उसने आगे यह भी कहा कि मैं भी सोच रहा हूँ कि तुम्हारे बताए रास्ते का कोई संकल्प लूँ ताकि उसे निभाने में आसानी तो रहे ही, मजा भी आए.
मुझे कुछ आश्चर्य हुआ. मैंने उससे पूछा कि वह लेख तुमने कहाँ पढ़ा. मुझे लगा कि वह भी अब इंटरनेट पर सैर करता होगा. परंतु उसने कहा कि यहाँ का एक दैनिक अख़बार निकलता है उसमें तुम्हारा यह आलेख रविरतलामी के नाम से छपा है. मुझे सुखद आश्चर्य हुआ.
दरअसल यह आलेख इंटरनेट पर मेरी व्यक्तिगत साइट पर तथा विश्वजाल की हिन्दी पत्रिकाअभिव्यक्ति पर पिछले साल भर से है. अगर यह आलेख कहीं किसी प्रिंट मीडिया में छपा हुआ होता तो कब का किसी रोड साइड ठेले के समोसे-भजिए में लपेटा जाकर गुम हो चुका होता. परंतु अजर अमर इंटरनेट पर एक बार आपने इसे प्रकाशित कर दिया तो फिर यह भी अजर अमर हो गया. उस अख़बार ने इस लेख को इंटरनेट पर से ही उतारा और छाप दिया. धन्यवाद उस अख़बार को कि कम से कम उसने मेरा नाम भी लेख के साथ दिया. रचनाकारों के लिए इंटरनेट और ब्लॉग एक ऐसा माध्यम बनकर आया है कि आप अपनी रचनात्मकता को नित नए आयाम दे सकते हैं, बिना किसी संपादकीय कैंची के भय से और बिना किसी भय के कि यह कहीं प्रकाशित हो पाएगा भी या नहीं. आपकी रचना प्रकाशित रहेगी आने वाली पीढ़ियों के उपयोग के लिए अनंत काल तक, जब तक इंटरनेट का वज़ूद रहेगा.
सोच रहा हूँ कि नए साल के संकल्प में मैं अपने ब्लॉग की आवृत्ति बढ़ाऊँ. प्रतिदिन लिखने के लिए समय का प्रबंधन नए सिरे से करना तो होगा, परंतु इस ब्लॉग के पाठकों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्या वे इसे नित्य झेल पाएँगे? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से मुझ तक पहुँचाएं.
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ
*-*-*
आज सुबह-सुबह एक मित्र ने दुर्ग से फ़ोन पर बधाईयाँ देते हुए कहा कि तुम्हारा व्यंग्य लेख- ‘नए साल के नए संकल्प’ बहुत ही बढ़िया है, और पढ़ने में मज़ा आया. उसने आगे यह भी कहा कि मैं भी सोच रहा हूँ कि तुम्हारे बताए रास्ते का कोई संकल्प लूँ ताकि उसे निभाने में आसानी तो रहे ही, मजा भी आए.
मुझे कुछ आश्चर्य हुआ. मैंने उससे पूछा कि वह लेख तुमने कहाँ पढ़ा. मुझे लगा कि वह भी अब इंटरनेट पर सैर करता होगा. परंतु उसने कहा कि यहाँ का एक दैनिक अख़बार निकलता है उसमें तुम्हारा यह आलेख रविरतलामी के नाम से छपा है. मुझे सुखद आश्चर्य हुआ.
दरअसल यह आलेख इंटरनेट पर मेरी व्यक्तिगत साइट पर तथा विश्वजाल की हिन्दी पत्रिकाअभिव्यक्ति पर पिछले साल भर से है. अगर यह आलेख कहीं किसी प्रिंट मीडिया में छपा हुआ होता तो कब का किसी रोड साइड ठेले के समोसे-भजिए में लपेटा जाकर गुम हो चुका होता. परंतु अजर अमर इंटरनेट पर एक बार आपने इसे प्रकाशित कर दिया तो फिर यह भी अजर अमर हो गया. उस अख़बार ने इस लेख को इंटरनेट पर से ही उतारा और छाप दिया. धन्यवाद उस अख़बार को कि कम से कम उसने मेरा नाम भी लेख के साथ दिया. रचनाकारों के लिए इंटरनेट और ब्लॉग एक ऐसा माध्यम बनकर आया है कि आप अपनी रचनात्मकता को नित नए आयाम दे सकते हैं, बिना किसी संपादकीय कैंची के भय से और बिना किसी भय के कि यह कहीं प्रकाशित हो पाएगा भी या नहीं. आपकी रचना प्रकाशित रहेगी आने वाली पीढ़ियों के उपयोग के लिए अनंत काल तक, जब तक इंटरनेट का वज़ूद रहेगा.
सोच रहा हूँ कि नए साल के संकल्प में मैं अपने ब्लॉग की आवृत्ति बढ़ाऊँ. प्रतिदिन लिखने के लिए समय का प्रबंधन नए सिरे से करना तो होगा, परंतु इस ब्लॉग के पाठकों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्या वे इसे नित्य झेल पाएँगे? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से मुझ तक पहुँचाएं.
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ
रवि जी , आप नित्य लिखें हम जरूर झेलेंगे :)
जवाब देंहटाएं